Sunday, February 21, 2016

उज्जैन के 84 महादेव-भाग 17

84 महादेव : श्री जटेश्वर महादेव(28)

की कथा राजा वीरधन्वा और उनके द्वारा वन में किए गए दोषों के निवारण से जुडी हुई है। प्रस्तुत कथा ऋषि-मुनियों की महत्ता दर्शाती है। मुनि द्वारा बताए गए मार्ग पर ही राजा को शांति प्राप्त हो सकी।
 
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार वीरधन्वा नाम के एक राजा थे। वे धर्मस्वी, यशस्वी तथा पृथ्वी पर विख्यात थे। एक बार वे शिकार करने के लिए वन में गए। वहां उन्होंने मृग रूपी आकृति देख बाण चला दिए। जहां उन्होंने बाण चलाए वे वास्तविकता में संवर्त ब्राम्हण के पांच पुत्र थे जो मृगरूप में विचर रहे थे। उनका मृग रूप उन्हें मिले एक शाप की कथा में निहित है। उस कथा के अनुसार एक बार उन ब्राम्हण पुत्रों द्वारा हिरन के पांच छोटे बच्चों का वध हो गया था। घर जाकर बालकों ने अपने पिता को सारा वृत्तांत सुनाया और प्रायश्चित का मार्ग पूछा। तभी वहां भृगु ऋषि, अत्रि ऋषि और अभी ऋषि आ गए। सारी बातें जानने पर वे बोले कि प्रायश्चित हेतु तुम पांचों पांच वर्ष तक मृग चर्म ओढ़ कर वन में रहो। इस प्रकार वे पांचों वन में भटक रहे थे और एक वर्ष के पश्चात राजा वीरधन्वा ने उन्हें मृग समझ मार डाला।
जब राजा को यह ज्ञात हुआ कि वे ब्राह्मण पुत्र थे तो वे अत्यंत दुखी हुए। भय से कांपते हुए वे देवरात मुनि के पास पहुंचे एवं उन्हें सारी बातें कहीं। देवरात मुनि ने उन्हें शांत रहने को कहा और कहा कि भगवान जनार्दन की कृपा से तुम्हारा पाप दूर हो जाएगा। मुनि की सामान्य सी प्रतिक्रिया सुन कर राजा को क्रोध आ गया और उसने तलवार से मुनि की हत्या कर दी। इस हत्या के बाद वे और ज्यादा क्रोधित हुए, संतुलन खोते हुए वन में भटकने लगे और वहीँ उन्होंने गालव ऋषि की कपिल गाय का भी वध कर दिया। जड़ीभूत बुद्धि से वे दिशाहीन होकर वन में भटकते रहे।
 
राजा को वन में भटकते हुए एक बार मुनि वामदेव ने देखा। राजा को देखते ही वे सारा अतीत जान गए। राजा उनसे कहने लगा कि उसने ब्राह्मण हत्या की है, गौ हत्या की है, वह इस दोष से अत्यधिक दुखी है। तब मुनि राजा से बोले कि आपकी बुद्धि पूर्व काल के कुछ कर्मों के कारण जड़ हुई है और इसी वजह से आपको ब्रह्म हत्या का दोष लगा है। आप तुरंत महाकाल वन जाइए। वहां अनरकेश्वर के उत्तर में स्थित दिव्य लिंग का दर्शन कीजिए। उनके दर्शन करने से ही आपका उद्धार हो सकता है। मुनि के कहे अनुसार राजा महाकाल वन पहुंचे और वहां पहुंच कर उन्होंने मुनि वामदेव द्वारा बताए गए शिवलिंग का पूजन अर्चन किया। उनकी पूजा के फलस्वरूप उस लिंग में से जटाधारी शिव प्रकट हुए और राजा को ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त कर उनकी जड़ीभूत बुद्धि निर्मल करने का वरदान दिया। तभी से वह लिंग जटेश्वर कहलाया।
 
दर्शन लाभ:
मान्यतानुसार श्री जटेश्वर महादेव के दर्शन करने से पाप-दोष नष्ट होते हैं। भ्रष्ट बुद्धि वाले मनुष्य की स्थिति सुधर जाती है। ऐसा कहा जाता है कि श्राद्ध के समय जो जटेश्वर की इस कथा को पढ़ता है उसका श्राद्ध पितरों को प्रसन्न करता है। उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव में से एक श्री जटेश्वर महादेव गया कोठा में रावण दहन के स्थान पर स्थित है।
 

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