उज्जैन के 84 महादेवों में 13वें और 14वें स्थान पर आते हैं -
गंधर्ववती घाट स्थित श्री मनकामनेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से सौभाग्य
प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है कि एक समय ब्रह्माजी प्रजा की कामना से
ध्यान कर रहे थे। उसी समय एक सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्माजी के पूछने
पर उसने कहा कि कामना की आपकी इच्छा से, आपके ही अंश से उत्पन्न हुआ हूँ।
मुझे आज्ञा दो, मैं क्या करूँ? ब्रह्माजी ने कहा कि तुम सृष्टि की रचना
करो। यह सुनकर कंदर्प नामक वह पुत्र वहाँ से चला गया, लेकिन छिप गया। यह
देखकर ब्रह्माजी क्रोधित हुए और नेत्राग्नि से नाश का श्राप दिया। कंदर्प
के क्षमा माँगने पर उन्होंने कहा कि तुम्हें जीवित रहने हेतु 12 स्थान देता
हूँ, जो कि स्त्री शरीर पर होंगे। इतना कहकर ब्रह्माजी ने कंदर्प को क्षमा
का पुष्प का धनुष और पाँच बाण देकर बिदा किया। कंदर्प ने इन शस्त्रों का
उपयोग कर सभी को वशीभूत कर लिया। जब उसने तपस्यारत महादेव को वशीभूत करने
का विचार किया तब महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। इससे कंदर्प
(कामदेव) भस्म हो गया। उसकी स्त्री रति के विलाप करने पर आकाशवाणी हुई कि
रुदन मत कर, तेरा पति बिना शरीर का (अनंग) रहेगा। यदि वह महाकाल वन जाकर
महादेव की पूजा करेगा तो तेरा मनोरथ पूर्ण होगा। कामदेव (अनंग) ने महाकाल
वन में शिवलिंग के दर्शन किए और आराधना की। इस पर प्रसन्न होकर महादेव ने
वर दिया कि आज से मेरा नाम, तुम्हारे नाम से मनकामनेश्वर महादेव नाम से
प्रसिद्ध होगा। चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को जो व्यक्ति दर्शन करेगा, वह
देवलोक को प्राप्त होगा।
कुटुम्बेश्वर महादेव:
सिंहपुरी
क्षेत्र स्थित कुटुम्बेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से गोत्र वृद्धि होती
है। ऐसा कहा जाता है कि जब देवों तथा दैत्यों ने क्षीरसागर का मंथन किया तब
उसमें से ऐसा विष निकला, जिसने चारों ओर त्राहि मचा दी। देवताओं ने महादेव
से स्तुति की कि वे इससे उनकी रक्षा करें। महादेव ने मोर बनकर उस विष को
पी लिया, किंतु वे भी इसे सहन नहीं कर पाए। तब महादेव ने शिप्रा नदी को वह
विष दे दिया। शिप्रा ने इसे महाकाल वन स्थित कामेश्वर लिंग पर डाल दिया। वह
लिंग विषयुक्त हो गया। इसके दर्शन मात्र से ब्राह्मण आदि मरने लगे। महादेव
को मालूम होने पर उन्होंने ब्राह्मणों को जीवित किया तथा वरदान दिया कि आज
से जो भी इस लिंग के दर्शन करेगा वह आरोग्य को प्राप्त होगा तथा कुटुम्ब
में वृद्धि करेगा। तब से यह लिंग कुटुम्बेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता
है।