Friday, February 17, 2012

श्री दुर्गा सप्तश्लोकी -


– श्री दुर्गा सप्तश्लोकी -


भगवान श्री शंकर ने मां दुर्गा से पूछा -शिव उवाच:

देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

शिवजी बोले- हे देवी तुम समस्त कर्मों का विधान करने वाली और भक्तों के लिये अत्यन्त सुलभ हो। इसलिये इस कलियुग में भक्तों की कामना सिद्धि हेतु सर्वोत्तम उपाय अपनी वाणी द्वारा सम्यक रुप से व्यक्त करो।

इस पर देवी ने कहा - देव्यु उवाच-

शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥

देवी ने कहा - हे देव, आपका मुझ पर अत्यन्त स्नेह है । इस कलियुग में भक्तों की समस्त कामनाओं की सिद्ध करने वाला सर्वोत्तम साधन ” अम्बास्तुति ” है। इसी अम्बास्तुति को श्री दुर्गा सप्तश्लोकी कहते है जो इस प्रकार है।



ॐ अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकीस्तोत्र मन्त्रस्य नारायण ऋषि ।
अनुष्टुप छन्दः श्री महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः
श्री दुर्गाप्रीत्यर्थे सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥१॥

ॐ इस सप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्र के नारायण ऋषि है, अनुष्टुप छन्द है, श्री महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता है । श्री मां दुर्गा की प्रसन्नता के लिये सप्तश्लोकी दुर्गापाठ में इसका विनियोग किया जाता है। वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती है।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थे स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥२॥

हे मां दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती है और स्वस्थ मनुष्यों द्वारा स्मरण करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती है। हे मां आपके समान दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवी दूसरी कोई नही है और आपका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दयार्द्र रहता है।
सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥३॥

हे मां दुर्गे, तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो, सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली कल्याणदायिनी शिवा हो। तुम तीन नेत्रों वाली, गौरी और शरण में आये हुये भक्तजनों की रक्षा करने वाली हो। हे नारायणि देवी, तुम्हें नमस्कार है I

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे:
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥४॥

हे मां दुर्गे, तुम शरण मे आये हुये और दीन, दुःखियों का दुःख दूर करने वाली हो। पीडितों को पीडा हरने वाली हो। हे नारायणि देवी, तुम्हें नमस्कार है।

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहिनो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥५॥

हे मां दुर्गे, तुम सर्वस्वरुपा, सर्वेश्वेरी और सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरुपा हो। हे मां सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करो। हे देवी, तुम्हें नमस्कार है।

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥६॥

हे मां दुर्गे, प्रसन्न होने पर तुम सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। हे मां तुम्हारी शरण में आये हुये लोगों पर विपत्ति आती ही नहीं है और तुम्हारी शरण में आये हुये मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले बन जाते है।

सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम् ॥७॥


हे सर्वेश्वरी मां दुर्गे, तुम इसी प्रकार तीनों लोको की समस्त बाधाओं को शान्त कर हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

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