Wednesday, February 15, 2012

रामावतार

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥१॥

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥२॥

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता॥३॥

करुना सुखसागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता॥४॥

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै॥५॥

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥६॥

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥७॥

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥८॥

1 comment:

  1. आपदामपहर्तारं दातारां सर्वसम्पदाम्।
    लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो-भूयो नामाम्यहम्॥१॥

    रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय मानसे।
    रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥२॥

    नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम।
    पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम॥३॥.

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